Saturday, 29 October 2016

राव जयमल जी मेडतिया व पत्ताजी शिसोदिया - डिंगल गीत

बादसाह अकबर ने जब १५६७ में चितोड़ पर आक्रमण किया तो महाराणा उदय सिंह ने चितोड़ खाली कर पहाड़ों की शरण ली व चितोड़ का किला राव जयमल जी मेडतिया व पत्ताजी शिसोदिया को रक्षा के
लिए सुपुर्द कर दिया. दोना योधाओं ने अपने जीते जी चितोड़ पर दुश्मन का कब्जा नही होने दिया. इस सम्बन्ध में एक डिंगल गीत है:-
गीत
चवै राव जैमल चितौड मत चल चलै ,
हेड हूँ अरिदल न दूं हाथै !
ताहरै शीस पग चढ़े नह ताइया ,
माहरै शीस जे खवां माथै !!१!!

भावार्थ : " राव जयमल कहता है - हे चितौड तूं चल विचलित मत हो
दुश्मनों को मै भगा दूंगा -उन के हाथ तुम्हारे तक नही पहुंच ने
दूंगा.जब तक मेरा सिर (खवां ) कंधो पर है तब तक दुश्मन के पांव
तुम्हारे सिर पर नही पड़ेंगे .
धडकै मत चित्रगढ़ जोधहर धीरपै ,
गंज सत्रा दलां कंक गजगाह !
भुजां सूं मुझ जद कमल कमलां मिलै ,
पछे तो कमल पग दे पातसाह !!२!!
भावार्थ :हे चितोड़गढ़ ! तूं धडक मत ! भयभीत मत हो राव जोधा का पौत्र
तुझे धीरज बंधाता है. मै शत्रु दल व इस के हाथियों के समूह ध्वस्त करूंगा. .
मेरा मस्तक जब कटकर महारुद्र के गले में चढ़ जायेगा , उस के बाद ही बादसाह
तेरे मस्तक पर पग रख सकेगा .
दुदै कुल आभरण धुहड़- हर दाखवै ,
धीर मन डरै मत करै धोको !
प्रथि पर माहरो सीस पड़ियाँ पछे ,
जाणजे ताहरै सीस जोखो !!३!!
भावार्थ : राव दूदा के कुल का आभरण, राव धुहड का वंशधर ,जयमल
कहता है -हे चितोड़ -धीरज रख , डर मत और मन में किसी प्रकार का
धोका मत ला . प्रथ्वी पर मेरे मस्तक गिरने पर ही तुम्हारे पर कोई जोखिम
आएगी.
Courtesy--Madan Singh Shekhawat ji

No comments:

Post a Comment